Without Death, Bloodshed and Suffering by Francis Duggan
मौत, खूँरेजी और आफत के बिना
अनुवाद : खुर्शीद अनवर
जंग में फ़तह का इमकान तो मुमकिन ही नहीं
जंग के बाद जो मीरास में मिलता है हमें
दर्द के ग़ार और नफ़रत में ढले सब रिश्ते
जंग की आग से जो गभरू जवां बच आये
कूचे कूचे में निकलती परेडें उनकी
फिर सियासत के तरानों में जो सुर ढलते हैं
मर्सिया बन के जवां लाशों का वो चलते हैं
जंग सियासत की गेज़ा है किसी इज्ज़त की नहीं
खुदा और मुल्क की और कौम की इज्ज़त की नहीं
जाने कितने जवां खुशचेहरा चढ़े जंग की भेंट
और फिर सिलसिला चल निकला कुछ ऐसे जैसे
एक के बाद कई जंग के परचम उट्ठे
मुल्क और कौमी मोहब्बत के उठे तूफाँ में
लाखों दम तोड़ गए, लाखों तबाही में जले
जंग लड़ने की हवस बोती है जो बीज कहीं
नफ़रत इंसान से इंसान की बढती है वहीं
मुल्क के परचमों से प्यार दिखाने के लिए
कितने जांबाज़ जवां जवांमरगी से जा मिलते हैं
और फिर तमगे की सूरत कोई दिन तय करके
याद में सारे शहीदों की शहर, गांवों में
मुल्क से और शहीदों से मुहब्बत के एवज़
नौजवानों की परेडें ही है जो मिलती हैं