साझी विरासत क्या है : यह कैसे बनती है
कई बार आपने देखा होगा कि जब कभी भी ऐतिहासिक और मौजूदा समय और परिवेश के लिहाज से संस्कृति की चर्चा की जाती है तो परंपरा, विरासत और रिवाज़ जैसे शब्द अकसर चर्चा में आ जाते हैं। इन शब्दों का मतलब क्या है ? और संस्कृति से हमारा क्या मतलब है ? साझा विरासत के साथ संस्कृति का क्या संबंध है ? क्या हर संस्कृति बुनियादी तौर पर साझा होती है या कोई ऐसी संस्कृति भी होती है जिसे हम गैर-साझी सांस्कृतिक विरासत कह सकें ? संस्कृति हमें विरासत में कैसे मिलती है ?
विरासत का मतलब होता है कोई चीज विरसे में पाना। विरासत और उत्तराधिकार (कानूनी शब्द, जिसका आशय विरासत में धन या संपत्ति पाने से होता है) जैसे शब्द हमें अतीत का अहसास कराते हैं। इसके साथ ही ये शब्द इस बात का भी बोध कराते हैं कि हमारे अतीत का कुछ हिस्सा या पूरा का पूरा अतीत आज भी हमारे साथ है, हमारे पास मौजूद है। जब हम सांस्कृतिक विरासत की बात करते हैं तो आमतौर पर हम अतीत की संस्कृति के उन पहलुओं का ज़िक्र कर रहे होते हैं जो या तो हमारे पास फिलहाल मौजूद हैं या जो हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। संस्कृति के यही पहलू हमारी संपत्ति और हमारे संसाधन हैं। साझे का आशय एक विशेष किस्म की संस्कृति से है जो मिलीजुली है, परंतु विखंडित नहीं है। कोई संस्कृति साझी या पृथक (या विखंडित या गैर-साझी) भी हो सकती है। कुल मिलाकर ध्यान देने वाली बात यह है कि समग्रता में कोई भी संस्कृति न तो पूरी तरह साझा होती है और न ही पूरी तरह गैर-साझा। हर संस्कृति में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो दूसरी संस्कृतियों से मिलते-जुलते होते हैं, जिन्हें हम साझा सांस्कृतिक तत्व कह सकते हैं, जबकि उसके कुछ तत्व उसकी अपनी खासियत होते हैं, जो प्रायः औरों में नहीं पाए जाते।
संस्कृति को व्यवहारों और तौर-तरीकों के एक ऐसे समुच्चय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हमारा ज्ञान, हमारी मूल्य-मान्यताएं और नैतिकता, कानून, रीति-रिवाज, जीवनशैली और ऐसी सभी क्षमताएं और आदतें शामिल होती हैं जो हमें समाज का हिस्सा होने के नाते मिलती हैं। किसी खास समाज की संस्कृति को समझने का एक तरीका यह भी है कि हम उसकी जीवनशैली (आहार, वेशभूषा, बोली, रीति-रिवाज आदि), सांस्कृतिक उत्पादों (कला एवं शिल्प, संगीत, नृत्य, सौंदर्यशास्त्र आदि) और नैतिकता (नीतिशास्त्रीय अवधारणाएं, आदर्श, अच्छे और बुरे की समझ, अपेक्षित और अनपेक्षित आदि। इन तीन अवधारणाओं का अध्ययन करें। ये तीनों चीजें उस जटिल समुच्चय का अभिन्न हिस्सा हैं जिसे संस्कृति कहा जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन तीनों चीजों को मनुष्य तभी व्यवहार में ला सकते हैं जब वह किसी समाज के सदस्य हों। समाज के बिना, अकेले रहने पर उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। इसीलिए, हम कह सकते हैं कि संस्कृति किसी की व्यक्तिगत नहीं बल्कि एक पूरे समूह या समाज की परिघटना होती है। जब हम एक साझा संस्कृति की बात करते हैं तो हमारा आशय इस बात से होता है कि संस्कृति के उपरोक्त सभी पहलुओं में एक साझापन मौजूद था और वह अभी भी कायम है।
भारतीय संस्कृति की साझा विरासत हमारे इतिहास और हमारे हालात की एक अनूठी उपज है। हमें यह विरासत इतिहास की एक लंबी निरंतरता के जरिए हासिल हुई है। इस विरासत को ‘सत्ता के मूल्यों’ और ‘मानवीय मूल्यों’, इन दोनों पदों के जरिए समझना चाहिए। कहने का मतलब यह कि इस विरासत को यह खास शक्ल देने में हमारे आम लोगों और शासकों, दोनों ने अपने-अपने हिस्से का योगदान दिया है। इस विरासत का एक अहम पहलू उसका समन्वयी और बहुलवादी स्वरूप रहा है। भारत की साझा विरासत के इन आयामों को कुछ ऐसे प्रतीकों की मदद से और अच्छी तरह समझा जा सकता है जो भारत कही जाने वाली इस इकाई के सार को उजागर करते हैं। इस लिहाज से किसी देश या भौगोलिक इलाके का नाम भी ऐसा ही एक अहम प्रतीक हो सकता है। कोई भी देश अपना नाम या तो वहां रहने वाले लोगों के नाम से ग्रहण करता है या उसका नाम किसी महत्वपूर्ण भौतिक आयाम पर आधारित होता है।
- इंडिया : यह शब्द सिंधु नदी (संस्कृत में सिंधु, पुराना ईरानी हिंदु, ग्रीक इंडोस, और प्राचीन ईरानी हप्ता हिंदावो, जो संस्कृत के सप्त सिंधवा अर्थात सात नदियों से मिलता-जुलता है) से लिया गया है। शुरू में सिंधु नदी (जो अब पाकिस्तान में है) के दक्षिण में पड़ने वाले इलाके को इसी नाम से जाना जाता था। धीरे-धीरे यह नाम सिंध (पाकिस्तान का एक प्रांत) के इलाके से बहुत दूर तक फैल गया। पश्चिम, मुख्य रूप से ग्रीक और लैटिन समाजों में इंडिया नाम 2,000 साल से भी पहले प्रचलित हो चुका था। इस विवरण से पता चलता है कि इंडिया शब्द इस उपमहाद्वीप के सभी समाजों की एक महान विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक सकारात्मक नाम है और इस इलाके और यहां के लोगों की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भौतिक पहचान का एक स्पष्ट प्रतीक है। पिछले 2,000 सालों से इंडिया नाम को इंसानियत के बहुत बड़े तबके की चेतना में एक अनूठी जगह और पहचान मिल चुकी है।
- भारत या भारतवर्ष : यह नाम इस इलाके के कुछ हिस्सों में बसने वाले समुदाय के नाम पर आधारित है। भारत शब्द ईसा पूर्व दूसरी सहस्राब्दी (1500 ई. पू. के आसपास) में यहां आए भारतीय-आर्य समुदाय के एक महत्वपूर्ण हिस्से का नाम था। भारतवर्ष (यानी जहां भारत नामक समुदाय रहता है या केवल भारत) नाम कम से कम 2,500 साल पहले तक केवल उत्तर-पश्चिमी भारत के एक खास हिस्से के लिए इस्तेमाल किया जाता था मगर बाद में यह भी एक बहुत बड़े भौगोलिक इलाके तक फैल गया। महाभारत महाकाव्य में यह नाम इस समूचे क्षेत्र के लिए इस्तेमाल होता हुआ दिखाई देता है।
- जम्बू द्वीप : जम्बू शब्द का मतलब होता है जामुन (जामुन का पेड़ या फल, दोनों) और जम्बू द्वीप का आशय संभवतः किसी ऐसे द्वीप से रहा होगा जहां जामुन के पेड़ बहुतायत में पाए जाते थे। यह नाम भारत को उसके एक विख्यात शासक, सम्राट अशोक (तीसरी शताब्दी ई. पू. के आसपास) ने दिया था। उन्होंने इस क्षेत्र की एक नई पहचान कायम की। यह पहचान इस इलाके की सीमाओं या यहां के लोगों के किसी गुण पर नहीं बल्कि यहां की आबोहवा और पर्यावरण पर आधारित थी।
- आर्यावर्त : इस नाम का शाब्दिक अर्थ होता है आर्यों की भूमि। यह नाम इस देश पर विजय प्राप्त करने वाले आर्यों ने दिया था। यह नाम खासतौर से हिमालय और विंध्य पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित इलाके के लिए इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि इस इलाके की भाषा पर आर्य संस्कृति का प्रभाव काफी गहरा था।
- हिंद या हिंदुस्तान : यह नाम शुरुआती मुस्लिम शासकों ने दिया था। क्षेत्रफल के लिहाज से हिंदुस्तान भी वही था जो आर्यावर्त था। यानी हिंदुस्तान भी मध्यभूमि के इलाके को ही कहा जाता था। बाद में धीरे-धीरे समूचे क्षेत्र को इसी नाम से जाना जाने लगा।
इतिहास के अलग-अलग चरणों में हमारे देश को मिले अलग-अलग नाम इस देश के इतिहास की जटिलता और बहुलता का आईना हैं। इन नामों से अलग-अलग भाषायी प्रभावों (लैटिन, ग्रीक, संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी), विभिन्न शासकों (आर्य, बौद्ध और मुस्लिम), और समुदायों (भारत समुदाय) के नाना प्रयासों और देश को पहचानने के अलग-अलग मानदंडों (यहां की आबोहवा, भौगोलिक सीमा) आदि का पता चलता है। बहरहाल, अब ये सारे नाम चलन में हों या न हों, मगर कुल मिलाकर यह सभी एक ही इकाई का प्रतिनिधित्व करते हैं।