मौत के सौदागर
डॉ. खुर्शीद अनवर
टैंक रॉकेट कि सदा बन गयी जो कल थी अजां
सारे औराक-ए-कुरआं चीखते चिल्लाते रहे
और तुम मौत का परचम यूँ ही लहराते रहे
जो हदीसें थी उन्हें अपनी ज़बां देते रहे
और
जिहालत को तुम इस्लाम बताते ही रहे
कोई हिंदू कोई सिख कोई ईसाई निकला
तेरी बन्दूक के साये से कोई बच न सका
कोई शीया, कोई अहमदिया कोई बोहरा हो
मौत का जाम पिए और सर पे तेरे सेहरा हो
कौन है तेरा रसूल कौन है इस्लाम तेरा
कौन मज़हब है तेरा कौन सा ईमान तेरा
तुझ को मालूम नहीं क्या है रवायत तेरी
तुझ को मालूम नहीं क्या है इबादत तेरी
तू हमा-उस्त1 के नारे से तो वाकिफ ही नहीं
हमा–अज़-उस्त2 समझना तेरी किस्मत में नहीं
इन्ही अलफ़ाज़ ने मज़हब को ज़िया बख्शी थी
इसी तारीख ने दुनिया को मोहब्बत दी थी
हाय तूने किये वह ज़ुल्म कि नफरत फैली
तेरी वहशत से ज़माने में क़यामत फैली
तेरे जैसे ही हैं मौजूद हर एक मज़हब में
तू है और वह हैं, ज़माना है तुम्हारी ज़द में
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1. हमा-उस्त : अद्द्वैत; 2. हमा –अज़-उस्त : द्वैत