मुहम्मद
अनुवाद : खुर्शीद अनवर
डरा, सहमा हुआ आग़ोश में अपने ही वालिद की
सुलगते आसमां को देखता है, सहम जाता है
मेरे बाबा मुझे थामो,
हवाएं तेज़ हैं और पंख मेरे अब भी नाजुक हैं
अंधेरा हर तरफ़ है कुछ नज़र आता नहीं बाबा
मुहम्मद घर को आना चाहता है
वह मेरी सायकिल और मेरे पहनावे मुझे न दो
मेरा स्कूल दे दो और किताबें मुझको फिर दे दो
मेरे बाबा हमें घर ले चलो, वापस चलो बाबा
दरख़्तों के घने साए समंदर की जवां मौजें
मैं उनके साथ अपनी ज़िंदगी फिर से बिताऊंगा
नहीं दरकार मुझको और कुछ बस घर चलो बाबा
मुहम्मद
न हाथों में कोई पत्थर
न तारों का कोई नश्तर
वह सीना तान कर सकता है
फ़ौजों की कतारों को
ये जो क़िस्मत बनी उसकी
कभी मर्ज़ी न थी उसकी
मगर सुन लो कि आज़ादी का परचम झुक नहीं सकता
मैं इस परचम में मर सकता हूं लेकिन रुक नहीं सकता
मैं बाबिल का परिंदा हूं मेरी परवाज़ ऊंची है
मेरी हद आसमानों की बुलंदी से भी ऊंची है
मगर एक नाम जो मुझको मिला उस नाम के पीछे
सनद दे दी है लानत की मेरे दुश्मन ने खुद लिख के
कोई बतलाए कितने ओर बच्चे ऐसे जनमेंगे
वतन का नाम और बचपन के लम्हे जिनके न होंगे
मगर वह ख़्वाब देखेगा कि उसके ख़्वाब में तो है
इबादतगाह उसकी और वतन के अनगिनत टुकड़े
मुहम्मद रू-ब-रू था मौत के जो आन पहुंची थी
अचानक ज़ेहन में तस्वीर उभरी जो उसने देखी थी
ये वह मंज़र था जो टीवी के परदे पर नज़र आया
कि भूखे शेर को एक दूध का प्याला नज़र आया
मगर उस दूध के प्याले में उसके मौत का सामान विष भी था
यूं मोड़ा दूध से मुंह शेर ने जैसे कि वह प्याला
फ़ना कर देगा वहशीपन और ताक़त उसकी पी लेगा
मुहम्मद
कि वह नन्हा फ़रिश्ता जिसका क़ातिल उसके सर पर था
कि वह नन्हा फ़रिश्ता कैमरे जब चमके उस तन पर
वह चेहरा जैसे सूरज, दिल कि जैसे सेब का टुकड़ा
यूं रौशन उंगलियां जैसे क़तारें शमाओं की रौशन
वह पैकर था दमकता क्योंकि वह नन्हा फ़रिश्ता था
वह क़ातिल सोच सकता था कि इस नन्हे से बच्चे को
अभी मैं छोड़ दूं और क़त्ल उस लम्हे करूं इसको
यह बच्चा सीख जाये अपने मुंह से फ़िलिस्तीं कहना
खुद अपनी राह चुनना और हमसे सरकशी करना
मुहम्मद
जैसे यीशु सो रहा हो और सपनों में उभरता हो
किसी पाकीज़ा सी तस्वीर में, पेड़ों के साये में
जवां सीनों में और मज़लूम इंसानों के ख़्वाबों में
मुहम्मद
जिसके सीने में लहू का दरिया बहता है
वह अपने आखिर मकसद को लेकर फिर से उठा है।