जलालुद्दीन रूमी की कविता 'आशिक' का अनुवाद
आशिक
अनुवाद: खुर्शीद अनवर
एक सिलसिला कि जिसका नशा है ही नातमाम
दानिशवरी के पर्दों का मिटना है इस लम्हे का निज़ाम
सारी हया पिघल के मुहब्बत का घोले जाम
दिल, रूह, जिस्म, इल्म का कोई नहीं है काम
खुद गर्क होके इश्क में कर जाओ अपना नाम
फिर मंजिलों पे ठहरेंगे कि हैं इश्क के गुलाम