Readings - Hindi

सांप्रदायिकता

संघ परिवारी संगठन और नान्देड बम विस्फोट
हिन्दू आतंकवादियों का जन्म ?

सुभाष गाताडे

यह कहना मुश्किल है कि राहुल महाजन की अदालती पेशी या प्रमोद महाजन की घिनौनी विरासत की आकंठ चर्चाओं में डूबी जनता के लिए 11 जून की यह ख़बर पता चली होगी या नहीं कि किस तरह महाराष्ट्र में सक्रिय अतिवादी हिन्दू संगठन की कार्रवाइयों के बारे में राज्य की गुप्तचर सेवा ने एक क्लासिफाइड रिपोर्ट महाराष्ट्र सरकार को पेश की है। (DNA- Hardcore Hindu Body Behind Nanded Blast, Dharmendra Tiwari. Sunday, June 11, 2006 20:1 IST)  इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र में पहली दफा सामने आये आतंकवादी हिन्दू संगठन की कारगुज़ारियों पर रोशनी डाली गयी है और उस पर नकेल डालने के लिए विशेष कदम उठाने की सलाह दी है।

यूं तो इन हिन्दू अतिवादी संगठनों की बमगोलों एवम बन्दूकों की कार्रवाइयों के बारे में सरकार को अपने विश्वस्त सूत्रों से पहले से ही सूचनायें मिल रही थीं, यहां तक कि विगत दो-तीन साल में नान्देड तथा उसके इर्दगिर्द के ज़िलों - औरंगाबाद, परभणी - आदि स्थानों पर हुए बम विस्फोटों में उनके हाथ होने के सूत्र मिल रहे थे, लेकिन यह पहली दफा हुआ कि किसी बड़ी हिंसक कार्रवाई को अंजाम देने के पहले ही वह पुलिस की पकड़ में आये। छह अप्रैल को महाराष्ट्र के चर्चित शहर नान्देड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने कार्यकर्ता लक्ष्मण राजकोंडवार के घर हुई बम विस्फोट की घटना से सभी राज़ एक-एक कर खुलते गये। सिंचाई विभाग का यह रिटायर्ड इंजीनियर राजकांेडवार खुद उन दिनों किसी धार्मिक यात्रा पर गया हुआ था।

उस रात सिंचाई विभाग कर्मचारियों की कालोनी पाटबन्धारे नगर मंे रिटायर्ड इंजीनियर राजकोण्डवार के घर में हुए रहस्यमय बम विस्फोटों में दो लोगों की नरेश राजकोण्डवार (रिटायर्ड इंजीनियर के पुत्र) और- हिमांशु पानसे की ठौर मौत हुई थी और बाकी तीन - योगेश देशपाण्डे, मारूति वाघ और गुरुराज तुपत्तेवार - (या चार) गम्भीर रूप से घायल हुए थे। घायल हुए व्यक्तियों ने होश में आने पर पुलिस को बताया था कि उनके साथ एक चौथा व्यक्ति राहुल भी था, जो तुरन्त वहां से भाग निकला था, जिसे पुलिस ने बाद में हिरासत में लिया। पुलिस के मुताबिक यह सभी लोग संघ परिवार के आनुशंगिक संगठन बजरंग दल के पुराने कार्यकर्ता थे, जिनमें से कुछ उसके पदाधिकारी भी रह चुके थे, और बजरंग दल की बैठकों में जाया करते थे। इस मामले की शुरुआती जांच स्थानीय पुलिस ने की और बाद में इस मामले को आतंकवाद विरोधी दस्ते (एण्टी टेरअरइज़्म स्क्वाड) को सौंपा गया ।

जानने योग्य है कि महाराष्ट्र में जिहादी आतंकवादी संगठनों के समानान्तर अतिवादी हिन्दू संगठनों के बढ़ते खतरे के बारे में जनाब आर आर पाटील ने, जो महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री है तथा गृह विभाग सम्भालते हैं, अपने प्रेस सम्मेलन में लोगों को बताया था। नागपुर स्थित संघ कार्यालय पर हुए आतंकी हमले के बाद उन्होंने यह जानकारी दी थी। पीटीआई द्वारा जारी समाचार के मुताबिक :
...उपमुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि पुलिस ने कुछ महीने पहले हुए नान्देड बम विस्फोटों के बारे में जो सुराग हासिल किये हैं वे इसी साल के शुरुआत में हुए परभणी बम विस्फोटों से जुड़ते हैं। पाटील का कहना था इस सम्भावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि दोनों विस्फोटों के पीछे हिन्दू अतिवादी संगठनों का हाथ हो। (DNA, PTI Thursday June 01, 2006 17:35 IST)
अगर मराठी अख़बार ‘लोकमत’ ( 24 मई 2006) की औरंगाबाद के हवाले से दी गयी ख़बर पर नज़र डालें तो यह स्पष्ट होता है कि मंत्री महोदय अपनी बातों के बारे में गंभीर थे। रिपोर्ट के मुताबिक
पुलिस कमिश्नर उद्धव काम्बले ने मीडिया को बताया कि बजरंग दल कार्यकर्ताओं द्वारा सम्पन्न नान्देड बम विस्फोट और औरंगाबाद में वर्ष 2001 और 2002 में हुए बम विस्फोटों के अन्तर्सम्बन्ध दिखाई देता है।
...18 मई 2001 को औरंगाबाद के गणेश मन्दिर के पास एक बम विस्फोट हुआ था। जब इस केस की तहकीकात चल रही थी तब 17 नवम्बर 2002 को विश्व हिन्दू परिषद के निराला बाज़ार स्थित कार्यालय के पास एक बम विस्फोट हुआ, उसके बाद खडकेश्वर के पास बने महादेव मन्दिर में एक बम विस्फोट हुआ। निराला बाजार और खडकेश्वर बम विस्फोटों में पाइप बमों का प्रयोग किया गया था। यह बात रेखांकित की जानी चाहिये कि एक महीना पहले सामने आये नान्देड बम विस्फोटों में भी पाइप बमों का प्रयोग किया गया था। यह बात भी सामने आयी थी कि बजरंग दल के कार्यकर्ता बम बना रहे थे।
नान्देड बम विस्फोट और औरंगाबाद में हुए दो बम विस्फोटों की समानताओं को देखते हुए इनकी जांच चल रही है।...( मराठी से अनूदित- लेखक)

अगर नान्देड बम विस्फोट के प्रसंग पर विधिवत नज़र दौड़ायी जाये तो पता चलता है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड के कारिन्दों ने किस तरह की आपराधिक साज़िश रची थी जो सफल नहीं हो सकी। गौरतलब है कि पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी की ‘भारत सुरक्षा यात्रा’ के महाराष्ट्र आगमन के ऐन मौके पर, जिसने काफ़ी पहले से ही लोगों के मन में इसके पहले की सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा की रक्तरंजित यादें तेज़ की थीं, इस साज़िश का खुलासा हुआ था। समस्या कई कारणों से इसलिए बढ़ गयी थी कि वह अप्रैल का महीना था जिसमें कई सारे त्यौहार एक साथ उपस्थित थे : मसलन महावीर जयंती, बाबासाहब अम्बेडकर जन्मदिवस और हनुमान जयंती। इसके अलावा विस्फोट के पहले चन्द दिनों से शहर का माहौल भी तनावपूर्ण था। किसी सिख युवती के किसी मुस्लिम युवक के साथ चले विवाह प्रसंग और उसके बाद घर से पलायन ने दोनों समुदायों को आमने सामने ला खड़ा किया था। पुलिस ने जब बाद में बम विस्फोट में मारे गये हिमांशु के घर पर छापा मारा तब वहां उन्हें इलाके में आमतौर पर मुसलमानों द्वारा पहने जाने वाले पहनावे, टोपियां, अलग-अलग आकारों की दाढ़ी भी मिली। आसपास के ज़िलों में बनी मस्ज़िदों के नक्शे भी वहां से बरामद हुए थे। कोई साधारण व्यक्ति भी बता सकता है कि पहले से साम्प्रदायिक तौर पर संवेदनशील कहे गये नांदेड और आसपास के इलाके में दंगों के आयोजन की योजना थी।

कोलकाता से निकलने वाले दैनिक ‘द टेलिग्राफ’ ने (10 अप्रैल 2006) परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए अपने रिपोर्ताज ‘बजरंग ब्लोज़ अपआन आडवाणी’ में लिखा था :
पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है कि बजरंग दल के कार्यकर्ता पिछले सप्ताह महाराष्ट्र में हुए बम विस्फोट में शामिल थे जिसमें दो लोगों की मौत हुई। यह घटना लालकृष्ण आडवाणी के लिए परेशानी का सबब बन सकती है जिनकी यात्रा, जिसे भारत सुरक्षा यात्राकहा गया है, आज राज्य में पहुंची क्योंकि बजरंग दल को संघ परिवार का हिस्सा माना जाता है।

इस घटना की चर्चा करते हुए बम्बई से निकलने वाले अंग्रेज़ी दैनिक ‘मिड डे’ ( 9 अप्रैल 2006) ने स्पष्ट किया था कि जांच अधिकारी इस बात को लेकर स्पष्ट था कि मारे गये दो लोग हिमांशु पानसे और नरेश राजकोण्डवार (मकान मालिक का बेटा) ‘समय समय पर बजरंग दल के पदाधिकारी थे और उसकी बैठकों में शामिल होते थे।’
रिपोर्ट के मुताबिक :
गौरतलब है कि इसके अलावा पुलिस ने उपरोक्त स्थान से एक और बम बरामद किया है और उसे बेकार कर दिया है। बुधवार की सुबह भाग्यनगर पुलिस स्टेशन के अन्तर्गत आने वाले पाटबन्धारे नगर में सिंचाई विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी के घर यह विस्फोट हुआ था

अगर हम नांदेड की सामाजिक संरचना पर गौर करें तो पता चलता है कि वहां हिन्दू (सात लाख), मुस्लिम (दो लाख) और सिख (1 लाख) सभी रहते हैं और विभिन्न कारणों से यह शहर साम्प्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है।

अगर प्रस्तुत यात्रा के पहले तमाम गैरभाजपा दलों द्वारा इस यात्रा के प्रभावों को लेकर प्रगट की गयी चिन्ताओं को देखें तो नान्देड की घटनाओं का महत्व समझ मंे आ सकेगा। इन सभी दलों ने एक सुर से मांग की थी कि यह यात्रा साम्प्रदायिक तनावों को बढ़ा सकती है, तनावों की नयी ज़मीन तैयार कर सकती है। इसे महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं कहा जा सकता कि यात्रा के शुरू होने के बाद अप्रैल माह में खण्डवा (मध्यप्रदेश), पाली (राजस्थान), भागलपुर (बिहार) आदि स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं। रांची ( झारखण्ड), वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में भी तनाव की स्थिति बनती दिख रही थी लेकिन सामाजिक संगठनों के हस्तक्षेप एवम पुलिस की सूझबूझ से मामले को समय रहते ही शान्त किया जा सका।

निश्चित ही नांदेड में सामने आये बम विस्फोट के तथ्य एक साज़िश की ओर इशारा करते हैं, जिसके तहत एक पुराने हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता के घर पर बम बनाये जा रहे थे। आखिर वह साज़िश क्या थी ? क्या उसका ताल्लुक महज़ नांदेड तक सीमित था ?

हिन्दुत्व ब्रिगेड के ढांचे से परिचित लोग बता सकते हैं कि वह किस तरह ऊंच-नीच अनुक्रम/श्रेणीबद्धता/हाइरआर्की पर टिका रहता है और जब तक हिन्दुत्व ब्रिगेड के सुप्रीमो हरी झण्डी नहीं देते तब तक किसी भी काम को अंजाम नहीं दिया जा सकता। आखिर यह जानने की ज़रूरत है कि अगर बजरंग दल के कार्यकर्ता बम बना रहे थे, तो किसके इशारे पर बना रहे थे, योजना क्या थी ? लोगों को याद हो कि नान्देड ज़िला महाराष्ट्र के जिस मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित है, वहां पर शिवसेना से लेकर संघ परिवार की अन्य जमातों की अच्छी खासी पकड़ है। कुछ साल पहले इसी इलाके के परभणी तथा अन्य स्थानों पर मस्जिदों के आसपास बम विस्फोट हुए थे, जिसमंे न केवल कई निरपराध मारे गये थे बल्कि इसके बाद पूरे इलाके में साम्प्रदायिक तनाव भी फैला था। निश्चित ही राज्य सरकार को चाहिये कि अपनी जांच का दायरा महज उपरोक्त घटना विशेष तक सीमित न रखे बल्कि उसकी गहराई में जाये।

इसे गनीमत ही समझा जाना चाहिए कि आडवाणी की यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने के ऐन मौके पर बम बनाने के इस काण्ड का पर्दाफाश हो गया, अगर नहीं होता तो क्या परभणी की मस्जिदों के सामने हुए बम विस्फोटों की तरह विस्फोटों की एक नयी श्रंृखला सामने आती और वह पूरे सूबे में तनाव का सबब बनती ? नांदेड बम विस्फोटों की पड़ताल करने नागपुर शहर से गयी ‘पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज़’ एवम ‘सेक्युलर सिटिज़न्स फोरम’ की रिपोर्ट में इस बात का विशेष उल्लेख किया गया है कि भाजपा तथा शिवसेना के स्थानीय पदाधिकारियों ने ज़िला प्रशासन को इस बात की चेतावनी दी कि ‘बेगुनाहों को तंग न किया जाये’ जिसका अर्थ यही निकाला जा सकता है कि वह इस पूरे मामले की गहराई से जांच नहीं होने देना चाहते थे।

पिछले दिनों पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज़ (पी.यू.सी.एल), नागपुर तथा धर्मनिरपेक्ष नागरिक मंच, नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में नांदेड बम विस्फोट को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गयी (www.pucl.org) प्रस्तुत रिपोर्ट बजरंग दल के प्रांतीय अध्यक्ष के इन दावों को खारिज करती है कि विस्फोट वहां रखे गये पटाखों के कारण हुए। रिपोर्ट के मुताबिक ‘अगर पटाखे आग पकड़ते हैं तो इन विस्फोटों/आवाज़ों का एक सिलसिला सुनाई देता है, न कि कोई सशक्त विस्फोट दिखता है। दूसरे, पटाखे जलने की सूरत में मकान में भी आग लगती है, ऐसी बात यहां नहीं दिखती। 7 अप्रैल को जारी पोस्ट मार्टेम रिपोर्ट ‘पटाखों’ की बात को पूरी तरह खारिज करती है क्योंकि उसके मुताबिक मृतकों के शरीरों से बम के टुकड़े भी निकाले गये।’ रिपोर्ट इस बात को भी जोड़ती है कि ‘नांदेड के पुलिस महानिदेशक/आई.जी. ने इस बात की ताईद की है कि मौका-ए-वारदात से ज़िन्दा पाईप बम बरामद हुए तथा सभी आरोपी बजरंग दल से संबंधित थे। तथा उपरोक्त घर बम बनाने का कारखाना था।’ टीम के लिए सबसे अधिक चिन्ताजनक पहलू था कि बरामद किया गया ज़िन्दा बम आई. ई. डी. तरह का था जिसे रिमोट कन्ट्रोल से संचालित किया जा सकता था।

अभी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि नांदेड बम विस्फोट की साजिश में पकड़े गये इन युवकों तथा असली साजिशकर्ताओं पर किस धारा में मुकदमा चलेगा। अगर आडवाणी के गृहमंत्री काल को याद करें तो उन दिनों बनाया एक कानून अगर अभी भी कायम होता तो निश्चित तौर पर इन सभी पर इसी कुख्यात पोटा के तहत आतंकवादी के तौर पर मुकदमा चलता। इसकी धारा तीन साफ-साफ कहती थी ‘जो कोई लोगों में आतंक फैलाने के उद्देश्य से ऐसा कोई काम करता है - जिसमें विस्फोटक पदार्थ या बन्दूक या अन्य किसी खतरनाक हथियार का प्रयोग होता है - या अन्य किसी भी तरीके से, जिसके तहत किसी व्यक्ति की जान चली जाती है या वह घायल होता है या सम्पत्ति का नुकसान होता है... वह आतंकवादी कारनामा करता है।’

वैसे यह तो स्पष्ट है कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब हिन्दुत्ववादी संगठनों के कारिन्दे दंगा कराने की नीयत से आपराधिक कार्रवाइयों को अंजाम देते पकड़े गये हों। अभी पिछले साल की ही बात है भीलवाड़ा, राजस्थान में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के सन्दर्भ में क्षेत्रीय पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ को अपनी जांच पड़ताल में इसी किस्म के तथ्य सामने आये थे। अप्रैल माह की बात है, भीलवाड़ा के करेडा तहसील स्थित पांच मंदिरों मंे 786 लिखी हरी झंडियां और पशुओं की हड्डियां मिलीं। लगातार तीन दिन तक करेडा बन्द रहा। संघ सम्प्रदायी संगठनों ने करेडा स्थित सूफी दरवेश सैलानी सरकार पर इसकी ज़िम्मेदारी सौंपते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसाया। पुलिस ने दबाव में आकर जांच भी की लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला। बाद में मंदिरों को अपवित्र करने की इस घटना में मुख्य सरगना कथित रूप से हिन्दुत्ववादी संगठन का एक नेता निकला जिसने अपने किसी मुस्लिम मित्र के साथ मिल कर यह षडयंत्र रचा था।

वैसे नान्देड बम विस्फोट में शामिल बताये जा रहे बजरंग दल के सदस्यों की गतिविधियों को हमेशा ही शंका की निगाहों से देखा जाता रहा है। जानकार लोग बता सकते हैं कि विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा 1986 में उसके गठन के समय से ही विवादों के साथ बजरंग दल का लम्बा रिश्ता रहा है। यही वह दौर था जब विश्व हिन्दू परिषद् की ओर से रामजन्मभूमि आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिये राम-जानकी रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा था और इसी यात्रा के लिये संरक्षण प्रदान करने के लिये हिन्दू युवकों को बजरंग दल के तत्वावधान में संगठित किया गया। विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना साठ के दशक के पूर्वार्द्ध में तत्कालीन संघ सुप्रीमो गोलवलकर की पहल पर हुई थी।

लोगों को याद होगा कि वर्ष 1999 में जब ग्राहम स्टेन्स और उसके दो छोटे बच्चों को जिन्दा जलाने की घटना में शामिल होने के भी इसके कार्यकर्ताओं पर आरोप लगे थे। इस घटना के महज़ तीन साल बाद उसी उड़ीसा में एक और बड़े काण्ड में विवादों के घेरे में आये थे। विश्व हिन्दू परिषद् और दुर्गा वाहिनी जैसे संगठन के सदस्यों के साथ मिलकर इनके सदस्यों द्वारा उड़ीसा विधानसभा पर किये गये हमले की ख़बर आयी थी। बताया जाता है कि इन संगठनों के सदस्य विधानसभा के बाहर धरने पर बैठे थे, जिसमें उनकी मांग थी कि अयोध्या में राम मन्दिर बनाने के लिये ज़मीन को रामजन्मभूमि न्यास को सौंपी जाये। जैसे ही सदन में भोजनावकाश हुआ, पांच सौ से अधिक की तादाद में त्रिशूल, लाठियां लिये इनके लोगों ने विधानसभा भवन पर हमला बोला। इस हमले में उन्होंने वहां काफ़ी तोड़फोड़ की और कई लोगों के साथ बदसलूकी की। (द हिन्दू, मार्च 17, 2002)

अभी दो साल पहले की ही बात है जब बजरंग दल और उसके ‘पितृ’ संगठन विश्व हिन्दू परिषद् ने महाराष्ट्र के सातारा ज़िले के प्रतापगढ़ किला स्थित अफ़ज़ल खान की कब्र को ध्वस्त करने का ऐलान किया था। (पीटीआई, सितम्बर 5, 2004) विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल के संयुक्त तत्वावधान में वहां इस काम को अंजाम देने के लिये काफ़ी लोगों को जुटाने की भी कोशिश की गयी थी। यह जुदा बात है कि यह समूचा कार्यक्रम टांय टांय फिस्स हो गया।

शायद लोगों को ढाई साल पहले उत्तर भारत के तमाम अख़बारों में छपी वह ख़बर याद होगी जिसमें बताया गया था कि ‘बजरंग दल ने किस तरह एक गांव को मुसलमानों से मुक्त किया।’ (इण्डियन एक्सप्रेस, 29 सितम्बर 2003) की रिपोर्ट ने इस घटनाक्रम का विस्तृत वर्णन पेश किया था : ‘अकलेरा (राजस्थान) एक चमकता केसरिया झण्डा इस ‘आदर्श हिन्दू ग्राम’ में आप का स्वागत करता है। हरियाली से घिरे मिश्रोली गांव ने इसी महिने यह नाम धारण किया है। बीते दस दिन यहां बजरंग दल के हथियारबन्द कार्यकर्ताओं ने उत्पात मचाया है, जिसके तहत उन्होंने 25 मुस्लिम परिवारों को अपने घरों से खदेड़ा है, उनके घरों में लूटपाट की है और उन्हें आग के हवाले किया है।’

पांच साल से अधिक समय बीत गया एक अन्य कारण से भी बजरंग दल और उसके समधर्मा संगठन चर्चित रहे हैं। अपने कार्यकर्ताओं को हथियारों का प्रशिक्षण देने के लिये वे शिविर चलाते रहते हैं। मुल्क के अलग अलग हिस्सों से इसके बारे में ख़बरें आती रहती हैं। नागरिक समाज/सिविल सोसायटी के सैन्यीकरण की उनकी कोशिशें -‘त्रिशूल दीक्षा’ जैसे एक अलग रूप में भी प्रगट होती रहती हैं जिसके तहत प्रतीकात्मक धार्मिक समारोह के ज़रिये लोगों को तेज़ धार वाले नुकीले हथियार बांटे जाते हैं। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने 2003 की अपनी एक रपट में इस बात को उजागर किया था कि ‘त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रमों और ऐसे इलाके जहां साम्प्रदायिक तनाव ने हिंसक शक्ल धारण की है, दोनों के बीच गहरा रिश्ता दिखता है।’

अब जहां तक अपने देश के संविधान का सवाल है तो उसके तहत यह स्पष्ट है कि निजी सेनाओं का हथियारबन्द होना एक तरह से कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती समझा जाता है। 1959 में बना इण्डियन आर्म्स एक्ट बिना लायसेन्स के हथियारों के रखने पर पाबन्दी लगाता है। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि आज की तारीख में भारतीय नागरिक समाज के इस जबरन सैन्यीकरण को रोकने वाला कोई नहीं है।

कोई यह पूछ सकता है कि हिंसक घटनाओं में शामिल होने या एक ऐसा वातावरण बनाने के पीछे का तर्क क्या है ? इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह की घटनायें जो सामाजिक ताने-बाने के साम्प्रदायिकीकरण तथा सैन्यीकरण को बढ़ावा देती हैं, उसके चलते जो वातावरण निर्मित होता है उसमें एक खास तरह के विचार को फलने-फूलने का अधिक मौका मिलता है तथा जनतांत्रिक विरोध की सम्भावनायें कम होती जाती हैं। संघ परिवार का विश्वदृष्टिकोण जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को ही नहीं बल्कि अवर्ण हिन्दू जातियों को भी ‘अन्य’ की तरह देखता है, इसकी स्वीकार्यता बढ़ने की सम्भावनाएँ अधिक हो जाती हैं।

वैसे नांदेड में हुए बम विस्फोट तथा उसमें संलिप्त हिन्दुत्ववादी संगठनों के कारिन्दों की यह घटना लगभग 58 साल पुराने एक चर्चित वाकये की याद ताज़ा करती हैं जिसमें मुसलमानों के जनसंहार की योजना इन्हीं हिन्दुत्ववादी जमातों ने बनायी थी जिसमें उनके तत्कालीन सुप्रीमो का नाम भी उछला था। उन दिनों संयुक्त प्रांत के मुख्य सचिव रहे राजेश्वर दयाल के संस्मरण ‘ए लाईफ आफ अवर टाईम्स ( 1998, ओरिएन्ट लोंगमैन) में इस बात का विवरण पेश किया गया है। पुस्तक के मुताबिक बंटवारे के तत्काल बाद पश्चिम क्षेत्र के पुलिस महानिदेशक रहे जनाब जेटली ने उनके सामने हथियारों से लदे लोहे के दो बक्से पेश किये।‘ वे इस साज़िश का सुबूत थे कि पश्चिमी ज़िलों में साम्प्रदायिक विध्वंस के सिलसिले को बढ़ाया जाये। उसमें मुसलमानों की बस्तियों और रिहाइश के इलाके के अचूक नक्शे थे।... संघ के कार्यालयों पर समय रहते डाले गये छापों के चलते इस प्रचण्ड षडयंत्र का पता चल सका था। यह समूची साज़िश संगठन के सुप्रीमो के निर्देशों और देखरेख में ही चली थी। मैंने तथा जेटली ने मुख्य आरोपी गोलवलकर की तुरन्त गिरफ्तारी के आदेश देने के लिए ज़ोर डाला’ लेकिन संयुक्त प्रांत के तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने गिरफ्तारी का आदेश देने से इन्कार किया।’

अन्त में, नांदेड काण्ड से यह तो किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए भी साफ होगा कि हिन्दुत्ववादी संगठनों की ओर से कोई गहरी साज़िश रची गयी थी, जो कामयाब नहीं हो सकी। लेकिन सोचने का सवाल बनता है कि शेष भारत में इसे लेकर इतना मौन क्यों है, इस चुप्पी के षडयंत्र का राज़ क्या है ? अगर किसी अल्पसंख्यक बहुल इलाके में इस किस्म की घटना सामने आती तथा किसी अतिवादी इस्लामिक समूह का नाम उससे जोड़ा जाता तो क्या इसी तरह की खामोशी बनी रहती ?

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